
Why is Valmiki Jayanti celebrated?
अगर आप महर्षि वाल्मीकि के बारे में जानकारी हासिल करना चाहते है तो आप सही जगह पर आये है। इस आर्टिकल में आपको सम्पूर्ण जानकारी दी जाएगी।
भारत में अनेक संतों और महात्माओं ने जन्म लिया है और उन्होंने भारत को विकसित करने में और अपनी संस्कृति को संभाले रखने में बहुत योगदान दिया है। इनमें से एक महान संत महर्षि वाल्मीकि है। उन्होंने भगवान् श्री राम के जीवन पर बारे में एक महाकाव्य लिखा जिसे हम वाल्मीकि रामायण या फिर सम्पूर्ण रामायण के नाम से जानते है।
महर्षि वाल्मीकि का जन्म कब हुआ था ?
पुराणों के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का जन्म महर्षि कश्यप के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर पर हुआ था। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था। इस दिन को ही हर साल वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक उनके बचपन का नाम रत्नाकर था।
वाल्मीकि का जीवन परिचय
कहा जाता है की ऋषि बनने से पहले रत्नाकर एक डाकू थे। मान्यताओं के अनुसार बचपन में उन्हें भीलनी ने चुरा लिया था। भीलनी खुद बुरे कर्मों और लूटपाट से रत्नकार का भरण पोषण कर रही थी। इस बात का रत्नाकर के मन पर बहुत असर पड़ा और वह डाकू बन गए। उन्होंने जंगल में राहगीरों को लूटना शुरू कर दिया। उन्हें लगा कि लोगों को लूटना ही उनका एक मात्र उद्देश्य और धर्म है।
उनकी शादी भी भीलनी से कर दी गई और उनके कई बच्चे हुए। अब अपने बच्चों को पालने के लिए उन्होंने और भी ज्यादा लूटना शुरू कर दिया।
कैसे बने रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि
एक बार नारद मुनि जंगल से गुजर रहे थे और उनको लूटने की मकसद से रत्नाकर ने उन्हें पकड़ लिया। तब नारद ने उनसे पूछा कि तुम यह सब पाप क्यों कर रहे हों। रत्नाकर ने उत्तर दिया कि वह यह सब अपने परिवार को पालने के लिए कर रहा है। तब नारद जी ने उनसे पूछा कि उनके पाप में क्या उनके परिवार वाले भी भागीदार बनेंगे। रत्नाकर ने कहा कि वह भी जरूर बनेंगे।
तो नारद जी ने रत्नाकर को घर पर पूछ कर आने को कहा। रत्नाकर उनके कहने पर अपने घर गए और अपने परिवार से पूछने पर उन्होंने इंकार कर दिया। उनके इंकार को सुनते ही रत्नाकर मानो जैसे एक दम से नींद से जाग गए हो। उनके अंदर अब वैराग्य और आत्मग्लानि भर गई। वह वापिस जंगल में आ गए और उन्होंने नारद जी से माफ़ी मांगी।
अब रत्नाकर पाप का रास्ता छोड़ने को तैयार था और उन्होंने नारद जी से इसका मार्ग पूछा। नारद जी ने उन्हें तमसा नदी के पास ‘राम राम’ का जाप करने को कहा। भूल से वह राम राम की जगह पर मरा मरा का जाप करने लग गए मगर धीरे धीरे यह जाप राम राम में बदल गया। उन्होंने कई वर्षों तक तपस्या की।
तपस्या के दौरान उनके आस पर चीटियों ने बांबी बना ली। इस वजह से उनका नाम वाल्मीकि पड़ा और आगे चल कर वह महर्षि वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
वाल्मीकि रामायण की रचना कैसे की
एक दिन वाल्मीकि जी ने दो पक्षियों को आसमान में आनंदचित मुद्रा में उड़ते हुए देखा। उनको देख कर वह बेहद खुश हुए। तभी उनमें से एक पक्षी को तीर लगा। और वह पक्षी नीचे गिरकर मर गया। वह एक नर पक्षी था। उसे देखकर मादा पक्षी दुखी हो कर चिलाने लगी। इसे देख कर वाल्मीकि जी को बेहद दुःख हुआ। तीर मारने वाले शिकारी ने भोजन के लिए तीर चलाया था। वाल्मीकि जी को गुस्सा आ गया और उन्होंने शिकारी को श्राप दे दिया। श्राप देते समय उनके मुख से श्लोक निकले।
उस समय सृष्टि रचेता ब्रह्मा जी प्रकट हुए। उन्होंने कहा कि जो श्लोक तुम्हारी वाणी से निकले है वह मेरी ही प्रेरणा से निकले है। अब तुम रामायण की रचना करोगे। ब्रह्मा जी के आशीर्वाद की बदौलत वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना की जिसे आज भी हम लोग पड़ते और पूजते है। ध्यान देने योग्य बात है कि वाल्मीकि जी ने रामायण राम की के जन्म से पहले ही लिख दी थी।
वाल्मीकि आश्रम में लव कुश का जन्म
माना जाता है कि श्री राम जी ने माता सीता को वनवास भेज दिया था। रामजी के कहने पर लक्ष्मण जी माता सीता को वनवास छोड़ कर आये थे। वन में माता सीता को महाऋषि वाल्मीकि जी अपने आश्रम में ले आये। उन्होंने माता सीता को अपनी पुत्री के समान कुटिया में रखा। आश्रम में माता सीता ने दो पुत्रों लव और कुश को जन्म दिया। जब लव कुश 8 वर्ष के हुए तो वाल्मीकि ने उन्हें रामायण की कथा सुनाई और लव कुश को कथा कंठस्थ करवा दी।
राम जी का अश्वमेध यज्ञ
उधर रामजी ने अश्वमेघ यज्ञ की घोषणा का दी। उस समय अश्वमेघ यज्ञ करने की लिए राजा को सभी राजाओं को परास्त करना अनिवार्य था तभी यज्ञ सम्पूर्ण होता था। रामजी ने यज्ञ का घोड़ा हर जगह पर भेज दिया। जब घोडा वापिस अपने राज्य आ रहा था तो लव कुश ने उस घोड़े को पकड़ लिया और रामजी को युद्ध की चुनौती दी।
दोनों भाइयों ने लक्ष्मण, भरत सहित सभी वीरों को हरा दिया। अंत में रामजी को भी युद्ध में आना पड़ा मगर वाल्मीकि जी ने युद्ध को रुकवा दिया। फिर राम जी ने वाल्मीकि जी से और लव कुश से यज्ञ में आने को कहा।
उसके बाद ही राम जी को लव कुश की सच्चाई के बारे में पता चला और उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया।
गुरु वाल्मीकि जयंती कितनी तारीख की है ?
हर साल की तरह इस साल भी वलमिकी जयंती पूरे भारतवर्ष में बड़ी धूमधाम से मनाई जाएगी। 2023 में वाल्मीकि जयंती 28 अक्टूबर को मनाई जाएगी। वाल्मीकि जयंती को वाल्मीकि मंदिर में पूजा की जाती है। भजन और कीर्तन की भी कार्यक्रम इस दिन किया जाता है। लोग सत्संग करते है और गुरु की महिमा का गुणगान भी करते है।