
Ahoi Ashtami Mata Ki Vrat Katha in Hindi: हिन्दू मान्यताओं के मुताबिक अहोई अष्टमी का व्रत बेहद महत्वपूर्ण है। यह व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रखा जाता है। हर साल महिलाएं अपने बच्चों की सलामती और लम्बी आयु की कामना के साथ इस व्रत को सम्पूर्ण करती है।
हिन्दू धर्म में हर त्यौहार और परम्परा का एक अपना ही अलग महत्व है। ऐसे में यह व्रत भी हिन्दू त्योहारों में बेहद ख़ास है। पंजाब में इस व्रत को चकरियां का व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत करवा चौथ से चार दिन बाद आता है और दिवाली से आठ दिन पहला किया जाता है।
अष्टमी के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर व्रत का संकल्प लेती है। इस व्रत में अहोई माता की तस्वीर या तो खुद से बनाई जाती है या फिर आजकल माता की तस्वीर भी बाजार से मिल जाती है। माता को रोली और फूल भी अर्पित किये जा सकते है। यह निर्जला व्रत होता है और इस दिन करवा चौथ की तरह कुछ भी नहीं खाना होता है। शाम को तारे को देखकर और अर्घ्य देने के बाद ही माताएँ अपना व्रत सम्पूर्ण कर सकती है और कुछ खा सकती है।
कई घरों में इस दिन दाल चावल बनते है। करवा चौथ की तरह ही अहोई अष्टमी माता की व्रत कथा पड़ी और सुनाई जाती है। जैसे महिलाएं अपने बच्चों की सुख शांति और लम्बी उम्र के लिए व्रत रखती है वैसे ही इस की कथा भी है।
मान्यताओं के अनुसार एक नगर में एक बड़ा अमीर साहूकार रहता था। उसकी एक पत्नी और 7 पुत्र थे। एक बार की बात है कि उसकी पत्नी दिवाली से पहले अपने घर को सजाने के लिए जंगल से मिटी लाने जाती है। उसके लिए वह अपने साथ फावड़ा भी ले जाती है। जहाँ पर वह फावड़ा चलाती है वहीं पर अनजाने में उससे एक साही के शावक की मृत्यु हो जाती है। इस बात से दुखी साही उसे श्राप दे देती है कि उसके बच्चें भी इसी तरह से ही मर जाये।
अब उस श्राप के चलते शाहूकार के सभी बच्चे मर जाते है। इस बात से दुखी हो कर एक सिद्ध पुरुष उसे अहोई अष्टमी की विधि पूर्वक पूजा करने की सलाह देते है। साथ ही साही और उस बच्चें का चित्र बनाकर पूजा करने की सलाह भी देते है।
वह औरत इसी तरह से व्रत रखकर पूजा करती है और अपने गुनाहों की माफ़ी मांगती है। इससे अहोई माता खुश होती है और उसके सातों पुत्रों को जीवित कर देती है। तभी से इस व्रत की परम्परा चली आ रही है और माएं अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए और लम्बी आयु के लिए यह व्रत रखती चली आ रहीं हैं।
2023 में अहोई अष्टमी का व्रत 5 नवंबर को रखा जाना है। इस दिन रविवार है। पूजा का शुभ महूर्त शाम 5:34 मिनट से लेकर शाम 6:53 मिनट तक है। तारा उदय का समय तकरीबन 5:59 बजे का है।
जैसे माता रानी ने साहूकार की पत्नी को आशीर्वाद दिया वैसे ही कामना है कि अहोई माता सब की मुरादें पूरी करें और सब के घर में खुशियां ले कर आये।