Shivratri Kyu Manai Jati Hai : शिवरात्रि का महत्त्व

Shivratri Kyu Manai Jati Hai

Shivratri Kyu Manai Jati Hai: महाशिवरात्रि का पावन त्यौहार पूरे भारत वर्ष में बेहद हर्षोल्लास से मनाया जाता है। शिवरात्रि का त्यौहार हिन्दू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण स्थान रखता है। शिव जी के भगत बड़े चाव से इस त्यौहार को बेहद धूम धाम से मनाते है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भोले शिव शंकर की पूजा करने से और व्रत रखने से मनुष्य के दुखों का नाश होता है।

महाशिवरात्रि वर्ष में केवल एक बार ही मनाई जाती है। इसे फागुन के महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवन शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। कहा जाता है कि माता पार्वती शिव जी विवाह करना चाहती थी। तीनों लोक के स्वामी भोलेनाथ को पाना इतना आसान कैसे होता।

माता पार्वती ने शिव जी को पाने के लिए कठोर तपस्या की। उन्होंने इतनी अधिक तपस्या की कि हर तरफ त्राहिमाम होना शुरू हो गया। बड़े बड़े पर्वत तक अपनी नींव से डगमगाने लग गए। तब शिव जी ने प्रगट होकर माता पार्वती से किसी सुन्दर राजकुमार से शादी करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि एक योगी से शादी करना आसान नहीं है।

मगर माता पार्वती नहीं मानी और भोले नाथ तो ठहरे भोले। वह माता पार्वती की बात मान गए और विवाह करने के लिए बरात लेकर पहुँच गए। शिव जी को पशुपति नाथ भी कहा जाता है। इसका मतलब है कि वह सभी के भगवन है। जितना उन्हें देवता मानते थे उतना ही दानव भी उनकी पूजा करते थे। वैसे तो कहा जाता है कि देवता और दानव कभी इक्क्ठे नहीं होते मगर शिव जी के विवाह के लिए दोनों ही एक साथ विवाह में आये।

उनके विवाह में भूत प्रेत और चुड़ैले भी बाराती बन कर पहुंचे। शिव जी शरीर पर भस्म लगाकर अपने विवाह में पहुंचे। ऐसी रंग बिरंगी बरात देख कर वधु पक्ष के लोग डर कर भाग गए। ऐसे देख कर पार्वती जी की माता ने अपनी पुत्री की शादी करने से मना कर दिया। तब पार्वती जी ने शिव जी से दूल्हे की तरह तैयार हो कर आने को कहा।

जब शिव जी दूल्हे के रूप में तैयार हो कर सुन्दर बन कर आये तब जाकर उनका विवाह संपन्न हुआ। पुराणों के अनुसार माता पार्वती शिव जी की दूसरी पत्नी थी। उनकी पहली पत्नी माता सती थी। उन्होंने यज्ञकुंड में कूद कर जान दे दी थी। हालाँकि माता सती ने ही दोबारा जन्म माता पार्वती के रूप में लिया था।

मान्यताओं के मुताबिक शिव जी की चार पत्नियां है। पहली माता सती, दूसरी माता पार्वती, तीसरी माता उमा और चौथी माता महाकाली है।

महाशिवरात्रि से एक दिन पहले नगर कीर्तन निकाला जाता है। इस दिन मंदिरों में भांग का प्रशाद चढ़ाया जाता है। हर जगह पर भगत बाबा का भंडारा लगाते है।

शिवरात्रि पर सभी भगतों को सुबह सुबह उठ कर शिव जी के मंदिर जरूर जाना चाहिए। वहां पर शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, धतूरा, पुष्प चढ़ाएं और शिव जी का आशीर्वाद जरूर प्राप्त करें।
भगवन शिव को देवों के देव महादेव भी कहा जाता है। महादेव के अनेकों नाम है जिनमें से भोले बाबा, भोला भंडारी, भोला शंकर, गंगाधर,प्रचलित नाम है। महादेव ही है जिन्होंने समुन्द्र मंथन के समय अपने कंठ में हलाहल को भरकर संपूर्ण विश्व को विष से बचाया था। इसी लिए उनका नाम नीलकंठ भी पड़ा। कहा जाता है कि विषपान करने से उनका शरीर गर्म होने लग गया था जिस वजह से उन्होंने अपने मस्तक पर चन्द्रमा को धारण किया। ऐसा इसलिए क्यूंकि चन्द्रमा शीतलता प्रदान करता है।

महादेव ही है जिहोने गंगा को अपनी जटाओं में धारण करके उनके वेग को रोक दिया था जिससे धरती नष्ट होने से बच गई थी। रघुकुल के भागीरथी अपने पूर्वजों को तारने के लिए गंगा मैया को धरती पर लाये। मगर गंगा का वेग इतना था कि अगर वह सीधे धरती पर आती तो धरती नष्ट हो जाती। ऐसे में भगवन शिव ने धरती और सम्पूर्ण जीवों को बचाने के लिए गंगा को अपनी जटाओं में स्थान दिया।

इस साल शिवरात्रि का त्यौहार 8 मार्च को मनाया जा रहा है।

Govardhan Puja

Resources: aajak, Livehindustan

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